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लेखनी कहानी -09-Mar-2023

ताहिर-हुजूर, मुझे खुद फिक्र है। क्या जानता नहीं हूँ कि मालिक को चार पैसे का नफा होगा, तो वह यह काम करेगा ही क्यों? मगर हुजूर ने मेरी जो तनख्वाह मुकर्रर की है, उसमें गुजारा नहीं होता। बीस रुपये का तो गल्ला भी काफी नहीं होता, और सब जरूरतें अलग। अभी आपसे कुछ कहने की हिम्म्त तो नहीं पड़ती; मगर आपसे कहूँ, तो किससे कहूँ?

 

जॉन सेवक-कुछ दिन काम कीजिए, तरक्की होगी न। कहाँ है आपका हिसाब-किताब लाइए, देखूँ।

 

यह कहते हुए जॉन सेवक बरामदे में एक टूटे हुए मोढ़े पर बैठ गए। मिसेज सेवक कुर्सी पर बैठीं। ताहिर अली ने हिसाब की बही सामने लाकर रख दी। साहब उसकी जाँच करने लगे। दो-चार पन्ने उलट-पलटकर देखने के बाद नाक सिकोड़कर बोले-अभी आपको हिसाब-किताब लिखने का सलीका नहीं है, उस पर आप कहते हैं, तरक्की कर दीजिए। हिसाब बिलकुल आईना होना चाहिए; यहाँ तो कुछ पता नहीं चलता कि आपने कितना माल खरीदा, और कितना माल रवाना किया। खरीदार को प्रति खाता एक आना दस्तूरी मिलती है, वह कहीं दर्ज ही नहीं है!

 

ताहिर-क्या उसे भी दर्ज कर दूँ?

 

जॉन सेवक-क्यों, वह मेरी आमदनी नहीं है?

 

ताहिर-मैंने तो समझा कि वह मेरा हक है।

 

जॉन सेवक-हरगिज नहीं, मैं आप पर गबन का मामला चला सकता हूँ। (त्योरियाँ बदलकर) मुलाजिमों का हक है! खूब! आपका हक तनख्वाह, इसके सिवा आपको कोई हक नहीं है।

 

ताहिर-हुजूर, अब आइंदा ऐसी गलती होगी।

 

जॉन सेवक-अब तक आपने इस मद में जो रकम वसूल की है, वह आमदनी में दिखाइए। हिसाब-किताब के मामले में मैं जरा भी रिआयत नहीं करता।

 

ताहिर-हुजूर, बहुत छोटी रकम होगी।

 

जॉन सेवक-कुछ मुजायका नहीं, एक ही पाई सही; वह सब आपको भरनी पड़ेगी। अभी वह रकम छोटी है, कुछ दिनों में उसकी तादाद सैकड़ों तक पहुँच जाएगी। उस रकम से मैं यहाँ एक संडे-स्कूल खोलना चाहता हूँ। समझ गए? मेम साहब की यह बड़ी अभिलाषा है। अच्छा चलिए, वह जमीन कहाँ है जिसका आपने जिक्र किया था?

 

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